Divorce Meaning In Hindi | तलाक का मतलब क्या होता है?

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हैलो दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का सवागत है। आज के इस लेख में आप को बहुत सारी जानकारी मिलने वाली है। आज का हमारा मुद्दा है Divorce। Divorce एक प्रक्रिया है जिसे लीगल सिस्टम के ज़रिए किया जाता है। Divorce के सभी फैसले फैमिली कोर्ट या फिर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के माध्यम से किए जाते हैं। ये कोर्ट दोनों की सुनता है और फिर फैसला लेता है। अगर पति पत्नी Divorce ले लेते हैं तो फिर से वो शादी कर सकते हैं, अगर वो चाहे तो। Divorce को हिंदी में तलाक कहा जाता है। तो चलिए आगे हम लोग Divorce meaning in hindi के बारे में विस्तार से जानते है।

Table of Contents

Divorce meaning in hindi – Divorce का मतलब क्या है?

Divorce Meaning In Hindi
Divorce meaning in hindi

Divorce का मतलब होता है पत्नी और पत्नी का अलग हो जाना। हमारे देश में Divorce के दो तरीके हैं- पहला तरीका यह है कि पति और पत्नी आपसी सहमति से Divorce ले सकते हैं और दूसरा तरीका यह है कि  एक तरफा अर्ज़ी करके। पहले तरीके में पति और पत्नी अपनी खुशी से अपना रिश्ता खत्म करते हैं।

यह तरीका बहुत ही अच्छा तरीका माना जाता है क्योंकि इसमें वाद-विवाद और एक-दूसरे पर आरोप लगाने जैसी कोई भी बात नहीं होती हैं। लेकिन आपसी सहमति से तलाक में कुछ खास बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। जैसे कि गुजारा भत्ता जो कि सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है।

पत्नी अगर पति पर आर्थिक तौर पर निर्भर है तो Divorce के बाद पती को अपनी पत्नी को जीवन गुज़ारने के लिए भत्ता देना होगा। यह भत्ता कितना भी हो सकता है। यह दोनों की आपसी सहमति पर निर्भर करता है।

आपसी सहमति से डाइवोर्स कब हो सकता हैं?

अगर पति और पत्नी कम से कम 1 वर्ष से अलग रह रहे हो तो वो अपनी अपनी सहमति से अलग हो सकते हैं। साथ ही साथ पति और पत्नी के बीच कोई ज़बरदस्ती या लडाई नही होनी चाहिए। और सुलाह या फिर एडजस्टमेंट की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

आपसी सहमति से डाइवोर्स की पूरी प्रक्रिया क्या है?

अगर किसी का शादी शुदा जीवन अच्छे से ना बीत रहा हो और साथ में रहने की कोई गुंजाइश ना बाकी रह गई हो तो आपसी सहमति से डाइवोर्स लेना ही बेहतर होता है। आपसी सहमति से डाइवोर्स की प्रक्रिया कुछ इस तरह से है-

पति और पत्नी दोनों का ही फैमिली कोर्ट में डाइवोर्स की प्रक्रिया के लिए शामिल होना अनिवार्य है। आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने के लिए , दोनों पति और पत्नी याचिकाकर्ता के रूप में माने जाते हैं। क्योंकि दोनों पति और पत्नी डाइवोर्स का फैसला करते हैं।

डाइवोर्स का सबसे पहला स्टेप है एक संयुक्त डाइवोर्स की याचिका को तैयार करना। और इसे फैमिली कोर्ट में फ़ाइल करना। फिर पति और पत्नी अपना अलग-अलग वकील करेंगे। जो अदालत में उनकी तरफ से हर चीज़ पेश करेगा।

जो याचिका पति और पत्नी के द्वारा दी जाईगी उसमे यह भी लिखा होना चाहिए कि वे दोनों अब साथ नहीं रहना चाहता ना ही रहने का संयोग कर सकते हैं तो इसलिए उन्हे डाइवोर्स ले लेना चाहिए।

साथ ही साथ इस याचिका में बच्चों की कस्टडी, पैसो के बंटवारे, गुज़ारा भत्ता, और आदि मामले भी मेनशेन होने चाहिए। इन सबके बाद दोनों का बयान ले लिया जाता है फिर कोर्ट के अन्दर ही कागज़ात पर साईन कर दिए जाते हैं।

फिर पति और पत्नी एक पीरियड दिया जाता है जो कि 6 महीने का होता है जिसे कूलिंग ऑफ पीरियड कहते हैं। इसमे पति और पत्नी को अपने रिश्ते के बारे में एक बार फिर से सोचने को कहा जाता है। ऐसा करना ज़रुरी नहीं है यह ऑप्शनल होता है।

इन 6 महीने के बाद भी अगर पति और पत्नी अलग होने का ही फैसला करते हैं तो उन्हे दुसरी सुनवाई के लिए आना होता है जो की आखरी सुनवाई होती है।

डाइवोर्स की डिक्री लेने से पहले अगर पति और पत्नी डाइवोर्स नही लेना चाहते हैं तो वह ऐसा कर सकते हैं। जब तक के पति और पत्नी दोनों डाइवोर्स के लिए राज़ी नहीं होंगे तो डाइवोर्स नही हो सकता है।

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आपसी सहमति से डाइवोर्स के क्या फाएदे है?

अगर पति और पत्नी आपसी सहमति से डाइवोर्स लेते हैं तो इसमे दोनों का ही पैसा और समय बचता है। Child Custody, रखरखाव, पैसो के बंटवारे, गुज़ारा भत्ता, आदि मसले बहुत ही आसानी से सुलझ सकते है। आपसी सहमति से डाइवोर्स  के लिए अदालत केवल कनफिरम करती है और कानूनी कार्यवाही पूरी करती है।

आपसी सहमति से डाइवोर्स के लिए कहां से फाइल करना होता है?

आपसी सहमति से डाइवोर्स के लिए अपने शहर के फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है। जहां पत्नी और पति आखिरी बार एक साथ रहते थे, मतलब उनका वैवाहिक घर या फिर जहां पे उनका विवाह रद्द कर दिया गया हो या फिर जहां पर पत्नी वर्तमान में रह रही हो।

अलग-अलग धर्मों के लिए डाइवोर्स के कानून क्या होते हैं?

भारत के अन्दर हर धर्म के लिए डाइवोर्स की प्रक्रिया अलग-अलग है-

हिन्दू विवाह कर्म, 1955 के तहत सिखों, जैन और बौद्धों के साथ हिंदुओं के लिए डाइवोर्स के कानून प्रदान किए जाते हैं ईसाइयों के लिए डाइवोर्स के कानून भारतीय तलाक कर्म, 1869 के तहत प्रशासित हैं।

मुस्लिमों के लिए डाइवोर्स के कानून डाइवोर्स और विवाह विच्छेद कर्म, 1939 और मुस्लिम महिला कर्म, 1986 के अपने व्यक्तिगत कानूनों के तहत प्रशासित हैं।

सभी अंतर-धर्म विवाह के लिए डाइवोर्स कानून एक धर्मनिरपेक्ष कानून यानी की विशेष विवाह कर्म, 1954 के तहत युक्त होते हैं।

पति या पत्नी डाइवोर्स के लिए अपनी याचिका कब वापस ले सकते हैं?

पति और पत्नी 6 महीने की कूलिंग पीरीयड के दौरान जो कि पहली और दूसरी पेशी के बीच का पीरीयड होता है। यह कह सकते हैं कि उन होने सुलह कर ली है और उनका डाइवोर्स का अब कोई इरादा नहीं है। अदालत को एक आवेदन दायर करके पति और पत्नी अपनी याचिका को वापस ले सकते हैं।

किन किन कारणों के लिए याचिका किया जा सकता है?

डाइवोर्स लेने के बाद याचिका काफी सारे कारणों की वजह से दायर की जा सकती है- अगर पति या पत्नी में से कोई एक किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग कर लेता है।

अगर पति या पत्नी में से कोई एक किसी एक के साथ क्रूरता या फिर बुरा वहवार करता है जिससे उसकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो सकती हैं।

  • पति या पत्नी किसी एक को कोई यौन संचारित बिमारी हो।
  • दोनों में से किसी एक को कुष्ठ रोग हो।
  • अगर जीवनसाथी पागल हो।
  • या फिर किसी एक ने अपने धर्म बदल लिया हो।

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क्या कोई बिना डाइवोर्स लिए दुसरी शादी कर सकता है?

अगर पति या फिर पत्नी को दुसरी शादी करनी है तो पहले वाले शख्स से डाइवोर्स लेना ज़रूरी होता है। कानूनी तौर पर डाइवोर्स किए बिना दुसरी शादी करना अपराध है इसमे भारतीय कानून के तहत 7 साल की सजा और दंडनीय देना होता है।

क्या डाइवोर्स की डिग्री लेने के लिए पती पत्नी का वहाँ मौजूद होना ज़रुरी है?

पति और पत्नी का पहली और दूसरी तारिख में मौजूद होना ज़रुरी होता है। अगर पति और पत्नी किसी कारण की वजह से कोर्ट में मौजूद नही हो पाता है तो कोर्ट उन्हे कैमरा के द्वारा कार्यवाही करने की इजाज़त दे देती है।  

डाइवोर्स होने पे Child Custody का फैसला किन आधार पर लिया जाता है?

अगर पति पत्नी के बच्चे हैं तो बच्चों की कस्टडी भी बहुत ही ज़रूरी मुद्दा है। पति पत्नी में से कोई एक बच्चे को रख सकता है लेकिन अगले इन्सान को उसकी मदद करनी होगी जिसके पास बच्चे की कस्टडी है।

आमतौर पर,  ऐसा होता है कि अगर बच्चे की उम्र 12 वर्ष की है तो बच्चे की कस्टडी उसकी माँ को ही मिलती है और साथ मे यह फैसला भी होता है कि उसके पिता उससे मिल सकते हैं। और इस अदालत के फैसले से दोनों पति और पत्नी का सहमत होना ज़रुरी है।

माता पिता अपने बच्चे की एक साथ कस्टडी भी ले सकते हैं। जैसे कि माँ और बाप में से एक के पास बच्चे की शारीरिक कस्टडी रहेगी और दोनों माता और पिता के पास बच्चे की कानूनी कस्टडी रहेगी। यह अदालत की ज़िम्मेदारी है कि पति और पत्नी के Divorce के बाद बच्चे को किसी भी तरह की परेशानी ना हो।

आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने में कितना समय लग जाता है?

अगर पति और पत्नी आपसी सहमति से डाइवोर्स लेना चाहते हैं तो उनकी सारी प्रक्रिया को पूरा होने में 6 महीने से लेकर 1 साल तक लग सकता है।

क्या कोई इन्सान नोटरी के माध्यम से आपसी सहमति डाइवोर्स की डिक्री ले सकता है?

नहीं ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि आपसी डाइवोर्स की डिक्री केवल उचित न्यायालय के द्वारा ही प्रदान की जा सकती है।

आपसी सहमति से डाइवोर्स में रखरखाव और गुज़ारा भत्ता के मसले कैसे हल होते हैं?

आपसी सहमति से डाइवोर्स में रखरखाव, पैसो का बंटवारा और गुज़ारा भत्ता के मामलों दोनों पति और पत्नी की सहमति के साथ हल होते हैं।

6 महीने के कूलिंग-ऑफ का क्या मतलब होता है?

6 महीने के कूलिंग-ऑफ का मतलब होता है कि यह कोर्ट के द्वारा दिया गया एक पीरीयड होता है जिसमें पत्नी और पत्नी को अपने रिश्ते पे एक बार फिर से सोचने का मौका दिया जाता है। लेकिन यह ज़रूरी नही है अगर आप ऐसा कोई पीरीयड नही लेना चाहते हैं तो यह आपकी मरज़ी होती है।

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N.R.I के डाइवोर्स की क्या प्रक्रिया होती है?

अगर कोई N.R.I जोड़ा है और वो डाइवोर्स लेना चाहते हैं तो वे जिस देश में रहते हैं वही की याचिका दायर करेंगे। सकते हैं जहां पति-पत्नी रहते हैं।

यह ज़रूरी है कि विदेशी अदालतों के द्वारा डिक्री धारा 13 के अनिर्णायक नहीं होनी चाहिए। क्योंकि भारत की अदालत विदेशी फैसले को लागू नहीं कर सकती है।

अगर भारत में डाइवोर्स की याचिका की अपील की जाती है तो और पत्नी या पति में से कोई एक विदेश में रहता है तो, कैमरा कार्यवाही की इजाज़त कोर्ट द्वारा दी जा सकती है।

एक तरफा डाइवोर्स-

एकतरफा डाइवोर्स में बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसमे पति और पत्नी दोनों का समय और दोनो का बहुत सारा पैसा ज़ाया हो जाता है। इस रास्ते में दोनों को ही बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ता है।साथ ही साअं कानूनी जटिलताएं भी होती हैं।

कुछ खास और सच्चे मामलों पर पति या पत्नी में से कोई एक कोर्ट में डाइवोर्स की याचिका की अपील कर सकता है। इसमे बहुत सारे मामले आजाते हैं जैसे कि शादी से बाहर किसी और से संबंध, शारीरिक या मानसिक तनाव, ज़्यादा वक्त से अलग रहना, बहुत ही ज़्यादा गंभीर यौन रोग, मानसिक हालत खराब होना, धर्म का परिवर्तन आदि।

इनके अलावा पत्नी को डाइवोर्स लेने के लिए कुछ खास अधिकार भी दिए गए है। जैसे कि अगर पति पत्नी के साथ संबंध बनाने के लिए ज़बरदस्ती करता हो

ता फिर पहली पत्नी से डाइवोर्स लिए बिना दूसरी शादी की हो या फिर पत्नी की शादी 18 वर्ष के पहले ज़बर्दस्ती करा दी गई हो तब भी शादी खत्म की जा सकती है।

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एक तरफा डाइवोर्स की प्रक्रिया-

अगर डाइवोर्स लेने के लिए पति और पत्नी सहमत ना हो तो यानी दोनों  में से एक अगर डाइवोर्स नहीं लेना चाहता हो तो उसके लिए एक इन्सान को दूसरे इनसान से बहस करनी पड़ेगी।

और यह तभी संभव है जब कोई एक साथी झगड़ा करता हो, मार पीट करता हो, आपको अकेला छोड़ देता हो, आपको शारीरिक या मानसिक तरह से प्रताड़ित करता हो या फिर आपके साथी की मानसिक स्थिति ठीक ना हो।

डाइवोर्स लेने के लिए जो डाइवोर्स चाहता हो उसे कोर्ट में एक याचिका दायर करनी होती है। और साथ ही साथ यह सबूत भी दिखाने होते हैं कि किस आधार पे डाइवोर्स फ़ाइल किया गया है।

याचिका दायर होने के बाद कोर्ट दूसरे इनसान के पास कोर्ट के द्वारा नोटिस जाईगी। यदि दूसरा इन्सान उस नोटिस का जवाब नही देता है तो डाइवोर्स एक ही पक्ष के द्वारा दिखाए गए सबूतों को मान लेती है। अगर वह इन्सान नोटिस मिलने पर कोर्ट में हाज़िर हो जाता है तो कोर्ट दोनों पक्षो को सुनती है

अगर पति और पत्नी में सुलह नही हो पाती है , तो केस करने वाला इन्सान लिखित में दूसरे के खिलाफ याचिका दायर करता है। और इस याचिका को 30 से 90 दिन के अंदर ही देना होता है। पति और पत्नी के बयान के बाद कोर्ट सबूतों और गवाहों के आधार पर अपना फैसला सुनाती है। इस प्रक्रिया में 1 2 यहा तक की 6 साल भी लग सकते हैं।

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लोगो ने यह भी पूछा (FAQ)

Q. डिवोर्स का हिंदी अर्थ क्या हुआ?

वैसे तो डाइवोर्स का हिंदी अर्थ तलाक होता है लेकिन इसकी हिंदी कुछ इस तरह हो सकती है जैसे अलगाव, विवाह-विच्छेद, विवाह का बंधन तोड़ना, आदि भी होता है

Q. शादी के कितने दिन बाद तलाक हो सकता है?

तलाक लेने से पहले पति और पत्नी साल तक एक दूसरे से अलग रहना होता है और पति पत्नी की रजामंदी से क़ानूनी कार्यवाही के द्वारा 6 महीने की तर्रेक मिल जाती है

Q. तलाक होने में कितना समय लगता है?

तलाक होने में कितना समय लगेगा ये बताना थोड़ा मुश्किल है क्योकि यह क़ानूनी कार्यवाही के ऊपर होता है लेकिन इसे एक अंदाज़े से समझे तो इसमें 6 महीने यानी की 180 दिन का समय लगता है

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निष्कर्ष –

तो दोस्तों आसा करते है आपको Divorce Meaning In Hindi का यह आर्टिकल आपको जरूर पसंद आया होगा क्योकि यहाँ हमने आपको डाइवोर्स से जुडी सभी जानकारी देने की कोसिस की है

अगर हमारा यह पोस्ट आपके लिए उसफ़ुल रहा हो तो इसे अपने दोस्तों और अन्य सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करे जिससे यह जानकारी जायदा से जायदा लोगो तक पहुंच सके | धन्यबाद दोस्तों

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